मेरा एक अनोखा सपना...
कॉलेज के दिनों में, मैं रश्मी से बहुत प्यार करता था ! हमारी मुलाकात भी किसी सपने से कम नहीं थी ! एक common दोस्त नें मुझे रश्मी से पहली बार मिलवाया था ! मुलाकात का सिलसिला चलता रहा और न-जाने कब हमें एक दुसरे से प्यार हो गया !

रश्मी, सपनो से ज़यादा सुन्दर, एक बहुत ही हसीन लड़की थी ! चुलबुली और सब का ख़याल रखने वाली ! हम दोनों एक दुसरे से बहुत प्यार करते थे ! मैंने रश्मी को अपने परिवार वालो से मिलाया और मेरी उम्मीद के मुताबिक, रश्मी सभी को बहुत पसंद भी आई ! सभी जानते थे कि हम जल्द ही शादी करेंगे ! रश्मी के साथ शादी करने के हसीन सपने को साकार करना ही अब मेरी जिंदिगी का मकसद बन गया था ! मैं रश्मी को एक अच्छी ज़िन्दगी देने के लिये, काम में डूबता चला गया !

वक़्त गुज़रता गया और हम एक दुसरे का साथ देते रहे ! इस दोरान हम और भी करीब आये ! रश्मी हर वक़्त एक पत्नी की तरह मेरा ख़याल रखती थी ! जिंदिगी एक हसीन सपने की तरह गुज़र रही थी ! मेरा भी रश्मी के साथ पूरी जिंदगी बिताने का सपना अब सच होता नज़र आ रहा था ! पर सपने तो जैसे सपने है, वो हमेशा सच कहाँ होते है…

रश्मी अब शादी की उम्र तक पहुच गयी थी ! उसको जिंदिगी में पा कर, मेरा ध्यान सिर्फ अपने काम पर था ! उन दिनों, मैं अपने करियर को खड़ा करने में इंतना मशरूफ था, की मुझे पता ही नहीं चला कि कब उसके घरवाले उसके लिए लड़का ढूँढने लगे ! मेरी हैसियत इतनी नहीं थी कि मैं रश्मी के घरवालो से अपने रिश्ते की बात कर सकूं ! रश्मी ने, अपने रिश्ते वाली बात मुझे कई बार बताई, पर मैंने इस बात को बहुत ही मामूली तरीके से लिया ! मैंने, कहीं न कहीं दिल में, रश्मी के साथ रहने का सपना संजोए रखा था जिसे मैं किसी भी कीमत पर टूटते हुए नहीं देख सकता था ! हर बार यह कह कर, कि "सब्र का फल मीठा होगा", मैं यह बात टाल जाता ! दिल ही दिल में, मैं जनता था कि वो ऐसा कुछ भी नहीं होने देगी ! वो मेरी है ...और मेरी रहेगी !

आखिर ऐसा दिन भी आया, जब रश्मी के लिए एक बहुत ही अच्छा रिश्ता आया ! उसके घर वाले बहुत खुश थे और उन्होंने रश्मी को रिश्ता कबूल करने के लिए दबाव डाला ! वो बेचारी क्या करती, आखिर, उसका दोष भी क्या था ! ना चाहते हुए भी, उसने वो रिश्ता कबूल कर लिया ! मैं यह सुन कर बहुत निराश हुआ और रश्मी से कुछ समय माँगा - "कुछ साल", जब तक मैं अपने पैरों पर खड़ा ना हो जाऊं ! पर शायद, अपने परिवार के दबाव में, रश्मी मुझे यह समय नहीं दे पायी ! मेरे सपने अब चूर-चूर होने लगे थे ! किस्मत को इस बात का दोष देते हुए, मैंने जिंदिगी का यह कड़वा घूँट भी पी लिया ! साल गुज़रते गये, रश्मी अब अपने ससुराल में बहुत खुश है ! मेरी भी शादी हो चुकी है ! इस बात को गुज़रे हुए अब 10 साल हो चुके हैं !

कई सालों बाद, ना जाने क्यूं, कल रात मैंने एक बहुत ही अनोखा सपना देखा ! सपने में, अपनी पत्नी की जगह मैंने रश्मी को पाया ! मैंने देखा की रश्मी मेरी हर बात का ख्याल उसी तरह रख रही है जैसे वो कई साल पहले रखा करती थी ! वो मुझे आज भी चाहती थी और अपनी चाहत का इज़हार भी कर रही थी ! रश्मी को अपने पत्नी की जगह पा कर, मैं भी जिंदिगी से बहुत खुश था ! वो सपना सच में ही बहुत अनोखा था !

इतने सालों बाद, मुझे आचानक उस की याद क्यों सता रही है? क्या सच में यह, किस्मत का ही दोष है या मैं अपने जिंदगी से खुश नहीं हूँ, या फिर आज तक मैं उसे भूल ही नहीं पाया हूँ? क्या मैं कभी भी, अपने पहले सच्चे-प्यार को, भुला पाऊँगा या नहीं? नहीं जानता!



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